राहु और केतु सदैव एक दूसरे के साथ युति संबंध में होते हैं। राहु किसी भी राशि में केतु के साथ युति संबंध में ही विराजमान रहता है। इसलिए इसके परिणाम किसी भी स्थिति में स्वतंत्र नहीं होते। राहु का दोष हमारे जीवन को अनेकानेक परेशानियों से घेर देता है। कहा जाता है राहु की वक्र दृष्टि अच्छे-अच्छों के खुशहाल जीवन को उजाड़ देती हैं। वहीं राहु का संतुलन, स्थिति को सामान्य रखता है। आप सभी परेशानियों का हल निकालने में तब सक्षम हो पाते हैं लेकिन जब राहु प्रसन्न रहते हैं तो आपके जीवन की सभी विघ्न बाधाएं स्वयं ही समाप्त होने लग जाती हैं, साथ ही जीवन में खुशहाली आती है।
इसलिए आज हम जानेंगे कुछ ऐसे उपाय जिनसे राहु को प्रसन्न रखा जा सकता है। लेकिन इसके लिए ज्योतिषीय स्थिति को समझना भी आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य की जन्म कुंडली में नौ ग्रहों के होने की परिचर्चा की गई है जिसमें एक ग्रह राहु भी है। शास्त्रों के अनुसार राहु सूर्य अथवा चंद्रमा को अपने में समाते हुए ग्रहण को उत्पादित करता है। राहु को ग्रह की बजाय छाया की संज्ञा दी गयी है। राहु, आरोही/उत्तर चंद्र आसंधि के देवता हैं। राहु काल को अशुभ माना जाता है और इसे राक्षसी सांप का मुखिया भी कहा जाता है। इतनी सारी वृत्तियों को धारण किए हुए राहु हमारी कुंडली में विराजमान होता है। ऐसे में इनके प्रभाव से बचने के लिए हमें सजग रहने की आवश्यकता है।
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इसके लिए कुछ उपाय बताए जा रहे हैं जिन्हे अपनाकर आप अपनी कुंडली में मौजूद राहु को शांत रख सकते हैं, साथ ही इसके दुष्प्रभाव की जगह शुभ फल की प्राप्ति भी कर सकते हैं। आइए देखते हैं, क्या है वे उपाय जिनसे हम अपने भाग्य पर मंडरा रही विपदाओं को समाप्त कर सकते हैं।
मंत्रोउपाय
राहु को प्रसन्न करने के लिए नीचे दिए गए मंत्र का लगातार 40 दिन तक 18000 बार जप करें। इस जप की क्रिया रात्रि काल में ही फलित होती है। अगर आप इसे काल भैरव या शिवजी के मंदिर में करते हैं तो यह अत्यंत ही फलदाई सिद्ध होती है। इस मंत्र के जाप से राहु के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं एवं खुशहाली आती है।
ह्रीं अर्धकायं महावीर्य चंद्रादित्य विमर्दनम्। सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्।
ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।।
ऊँ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्।
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इसके अतिरिक्त राहु बीज मंत्र का जप नियमित करना भी अत्यंत लाभकारी है। राहु बीज मन्त्र:-
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
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