शनि साढ़े साती, प्रभाव एवं उपाय

Shani Sade Sati Ke Upay

ग्रह गोचर नक्षत्र आदि के प्रभाव व दुष्प्रभाव हमारे जीवन पर अपना गहरा असर दिखाते हैं। ग्रहों के भाव, राशि आदि परिवर्तन का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव प्रदर्शित होता है। कुछ परिवर्तन हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दर्शा कर शुभ एवं लाभ के योग बनाते हैं, तो वहीं कुछ परिवर्तन हमारे जीवन में उथल-पुथल मचा कर रख देते हैं जिस कारण से हम हमारी ही जिंदगी से त्रस्त हो जाते हैं। ऐसे कुप्रभाव में शनि की कुदृष्टि व्यापकता सर्वत्र प्रचलित होती है। माना जाता है कि जिस जातक के ऊपर शनि की कुदृष्टि पड़ती है, उसका जीवन कलह-क्लेश एवं संकटों से घिर जाता है। उसके जीवन में आये दिन बेवजह कोई ना कोई समस्या मंडराती रहती है।

ज्योतिष विज्ञेताओं के अनुसार शनि की कुदृष्टि भिन्न-भिन्न प्रकार की मानी जाती है। कुछ जातकों पर शनि की ढैया का दुष्प्रभाव पड़ता है, तो कुछ पर शनि की साढ़ेसाती चल जाती हैं।  वहीं कुछ जातकों के सामान्य दोष के कारण उन पर शनि के न्यायिक दंडित प्रभाव दिखते हैं। शनि के भिन्न-भिन्न प्रभावों में से आइए आज हम जानते हैं शनि की साढ़ेसाती के संबंध में-

क्या है शनि की साढ़ेसाती का अर्थ?

शनि की साढ़ेसाती के नाम से ही सभी के अंदर खौफ छा जाता है। लोगों को लगने लगता है कि साढेसाती का अर्थ यह है कि सुख एवं चैन के दिनों का समापन हुआ और दुख पीड़ा कलह-क्लेश से भरी जिंदगी का आरंभ हो गई है। जबकि यह तथ्य सर्वदा हेतु सत्य नहीं है।

दरअसल शनि की साढ़ेसाती को लेकर लोगों के मन में नाना प्रकार के भ्रम फैले हैं। इस भ्रम तथा भय को मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु ज्योतिष के मुताबिक आपको साढ़ेसाती के गुत्थी को समझना होगा। ज्योतिष शास्त्र में यह वर्णित है कि किसी भी जातक की कुंडली में जन्म के समय चंद्रमा जिस भी राशि में विद्यमान रहता है, वह उस जातक की राशि होती है। इसी राशि यानी आपकी चंद्रराशि के ठीक पिछली राशि में जब शनि का प्रवेश होता है, तब साढ़ेसाती के प्रभाव का आरंभ हो जाता है।

शनि धीमी चाल चलने वाला ग्रह माना जाता है। चूँकि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में ढाई वर्ष का समय लग जाता है, इस अवधि को शनि की ढैया भी कहा जाता है।

शनि की साढ़ेसाती को सुगमता से यूं समझा जा सकता है कि शनि का सर्वप्रथम आपकी कुंडली में मौजूदा राशि के पूर्व के राशि में प्रवेश होता है, जिसमें शनि ढाई साल तक रहता है। तत्पश्चात यह आपकी राशि में प्रवेश कर उसमें अपनी चाल के अनुरूप ढाई वर्ष तक विद्यमान रहता है, फिर यह चंद्रराशि के बाद वाली राशि यानी उससे अगले वाली राशि में प्रवेश करता है, इस राशि में शनि के गोचर की कुल अवधि 7 वर्ष की होती है। इन तीनों राशियों में शनि के प्रवास की कुल निकालें तो यह जातक की कुंडली मे चंद्रराशि के इर्द-गिर्द साढ़े सात वर्षों तक बना रहता है। इस प्रकार से जब भी शनि आपकी कुंडली पर प्रभावी रहता है तो यह शनि की साढ़ेसाती कहलाता है।

साढ़ेसाती के दुष्प्रभाव

शनि के साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव उन जातकों पर पड़ता है जिनके कर्मों में दोष होता है। शनि सदैव बुरा करने वाले लोगों को उनके परिणाम प्रदान करते हैं।

  • शनि के दुष्प्रभाव पड़ने के बाद आपके सारे कामों में विभिन्न प्रकार की बाधाएं आने लगती है। बेवजह काम अटकने लगते हैं। माना जाता है कि कार्यों के क्षेत्र में अर्थात सफलता के मार्ग पर शनिदेव आकर खड़े हो जाते हैं, इस कारण कोई भी कार्य सफलता तक नहीं पहुंच पाता।
  • शनि के दुष्प्रभाव के कारण व्यक्ति का मन अनैतिक कार्यों की ओर अग्रसर होता है, वे अवैध कार्यों में रुचि लेने लगते हैं।
  • जब जातक पर का दुष्प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति का मन तामसिक खानपान मांस-मदिरा आदि का सेवन करने का करता है, लोग ऐसी बुरी चीजों की प्रति अग्रसारित होते हैं एवं उसके आदी हो जाते हैं।
  • ऐसे लोगों के जीवन में जमीन, प्लॉट, मकान अटके हुए धन आदि में आए दिन वाद-विवाद होता रहता है एवं समस्याएं आती रहती है।
  • सगे-संबंधियों से किसी न किसी प्रकार के मतभेद उत्पन्न हो जाना, भाई-भाई में दुश्मनी की भावना आ जाना, आये दिन घर परिवार में कलह बना रहना, आदि ये सब शनि की साढ़ेसाती के दुषप्रभाव के लक्षण हैं।
  • कार्यक्षेत्र में आपको कम तवज्जो मिलना, पदोन्नति में अनेकानेक बाधाओं का आना, नौकरी पर संकट का मंडराना, कार्यों में मंदी होना, घाटा, कर्जों का बोझ बढ़ना, कर्ज अदा करने में अनेकों समस्याएं उत्पन्न होना आदि प्रकार की समस्याएं शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव के कारण जीवन में उत्पन्न होने लगती हैं।
  • समाज में आपकी छवि का बिगड़ना, मिथ्या आरोप लगना, आपके मान-सम्मान में कमी आना, घर-परिवार में आप की महत्ता का घट जाना, शनि की साढ़ेसाती के ही लक्षण हैं।

क्या हैं शनि की साढ़े साती से बचने के उपाय?

  • शनि के दुष्प्रभाव से बचने हेतु उपाय में सर्वप्रथम आप उक्त मंत्र का नियमित 108 बार जप करें। यह शनि का बीज मंत्र है। इसके जप करने से आपके आसपास 24 घंटे रक्षा कवच बना होता है जिस कारण शनि अपना दुष्प्रभाव आप पर नहीं दिखा पाते।

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

  • स्नान तथा पूजन कर्म के पश्चात आप नियमित शनि स्त्रोत का पाठ करें। प्रतिदिन 11 बार पाठ करने से शनि आपसे प्रसन्न होते हैं।
    शनि स्तोत्र:- नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते।। नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते कालकायजे। नमस्ते यम संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।
  • लगातार 40 शनिवार को संध्याकालीन बेला में पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का एक दिया जलाएं। अगर संभव हो तो हर शनिवार के दिन जाकर संध्या काल में शनिदेव के मंदिर में भी एक दिया सरसों तेल का अवश्य जलाएं। इससे आप की साढ़ेसाती के प्रभाव लगभग समाप्त हो जाते हैं।
  • शनिवार के दिन काले घोड़े अथवा नाव की कील से बनी हुई अंगूठी या छल्ला अपने दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में शनि बीज मंत्र के 108 बार जप तथा स्तुति करने के पश्चात धारण करें। ध्यान रहे - यह अंगूठी या छल्ला आप शुक्रवार को ही सरसों के तेल में रात भर भिगो ने छोड़ दें। तत्पश्चात इसे दूसरे दिन शुभ मुहूर्त अनुसार धारण करें।
  • शनिदेव और हनुमान जी में अत्यंत गहरी मित्रता है। अतः हर शनिवार को हनुमत की आराधना करें। रोजाना एक बार कम से कम हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें। इससे आपके जीवन में आ रहे सभी संकटों का समाधान होगा एवं सभी दुष्प्रभाव समाप्त होंगे।
  • लगातार 21 शनिवार तक शनि के समीप तिल या सरसों के तेल से तांबे के दीपक में 24 घंटे शनिवार को अखंड दीपक जलाएं। इससे शनि की साढ़ेसाती के बुरे प्रभावों का का नाश होता है।
  • अपने स्वभाव में सकारात्मकता लाएं, दूसरों के हित हेतु स्वयं से पूर्व सोचें।
  • प्रत्येक शनिवार के दिन उड़द की दाल को अपने भोजन में शामिल करें। अगर संभव हो तो उपवास करें अन्यथा एक समय का उपवास तो आप कर ही सकते हैं।
  • साढ़ेसाती की काल अवधि के दौरान इस बात का खास ख्याल रखें कि आप कोई भी चुनौतीपूर्ण कार्य करने में ना लगें।
  • देर रात्रि को कहीं भी यात्रा पर ना जाए अन्यथा किसी दुर्घटना आदि के घटित होने की संभावना है। संभवतः आप पर कोई  गलत आरोप भी लग जाए।
  • किसी से वाद-विवाद करने से बचें, कोई बड़ा आर्थिक निर्णय ना लें। इससे आर्थिक संकट मंडराने की संभावना है।
  • घर-परिवार के वातावरण में शांति बनाए रखने की चेष्टा करें। इस दौरान कोई बड़ा निवेश करना आपके लिए हानिप्रद सिद्ध हो सकता है। अतः साढ़ेसाती की काल अवधि में अत्यंत सावधानी बरतें एवं सतर्क रहें। अपने आप को सकारात्मक बनाए रखें एवं धर्म के कार्यों में लगे रहे, इससे शनि की साढ़ेसाती के प्रभाव का आप पर असर नहीं होगा।

शनि सभी के लिए नहीं है घातक

अधिकांश लोगों का यह मानना है कि शनि एवं उनके दुष्प्रभाव लोगों के जीवन को तबाह करते हैं। जबकि सत्यता तो यह है कि शनि एक न्यायिक देवता हैं। वे लोगों को उसके कर्मो का फप भोगने को तत्पर करते हैं, अर्थात वह सदा केवल न्याय ही करते हैं, ना ही वह कभी किसी का अहित करते हैं और ना ही किसी के हित हेतु बेवजह जतन करते हैं। जो जातक अपने जीवन में सदैव सदकर्म करता रहता है, उसके जीवन पर शनि अपना शुभ प्रभाव दिखाते हैं। वहीं किसी जातक द्वारा कोई गलती अथवा दुष्कर्म किया जाता है, उस पर शनि अपनी कुदृष्टि दिखाते हैं एवं उसे उसके कर्मों की सजा देते हैं।

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जो जातक सदैव उचित एवं सही कर्म करते हैं, उनके ऊपर शनि की साढ़ेसाती अथवा ढैया का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसे जातकों से शनि सदैव प्रसन्न रहते हैं।

शनि की साढ़ेसाती एवं उसके प्रभावों को भिन्न-भिन्न चरणों में विभाजित किया गया है। आइए हम आज उसके संबंध में जानकारी लेते हैं-

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव तीन चरणों में जातक पर प्रभावी होता है। यह अलग-अलग राशियों पर अपने भिन्न-भिन्न प्रभाव दर्शाता है। आइए आज हम जानते हैं शनि के साढ़ेसाती अथवा बुरी दृष्टि का किन राशि के जातकों पर कितना प्रभाव पड़ता है।

  • शनि के प्रभाव से पीड़ित होने वाले जातकों में पहला चरण धनु, वृषभ, सिंह आदि राशि के जातकों का होता है। इन राशि के जातकों के ऊपर शनि की दृष्टि अत्यंत ही घातक होती है। ऐसे लोगों के लिए साढ़ेसाती का प्रभाव कष्टकारी होता है।
  • प्रभावों का दूसरा चरण जिसे मध्य चरण भी कहा जाता है, इसमें मकर, सिंह, मेष तथा कर्क एवं वृश्चिक राशि के जातकों के लिए होता है। इन पर शनि का प्रभाव मध्यम रहता है। इनके लिए साढ़ेसाती, ढैया आदि शुभ नहीं माने जाते।
  • शनि के दुष्प्रभावों का तीसरा चरण वृश्चिक राशि के जातकों के लिए माना जाता है। इनके लिए शनि का प्रभाव कष्टकारी होता है।