अपने जीवन में सुख समृद्धि कौन नहीं चाहता? कभी-कभी हर संभव प्रयत्न करने के बावजूद भी जातक को उनके द्वारा किए गए कार्य में सफलता नहीं मिल पाती हैं। अधिक परिश्रम व मेहनत के बावजूद भी उस कार्य का संपूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे- ग्रहों की दृष्टि का सही ना होना, भाग्य का साथ न देना आदि कई कारणों से जातक को उनके कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं होती है। कभी-कभी तो परिवार में कलह की स्थिति बन जाती है।
ज्योतिष के अनुसार- शनिवार के दिन कुछ उपाय करने से घर में सुख समृद्धि के साथ-साथ भाग्योदय भी होता है और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा दृष्टि जातक के ऊपर बनी रहती है। तो आइए जानते हैं शनिवार के दिन करने हैं कौन-कौन से उपाय।
शनिवार को शनि देव की पूजा अर्चना करनी चाहिए ऐसा करने से जातक को सभी प्रकार के कष्टों, दुख, परेशानियों आदि से मुक्ति मिलती है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान शनि के बुरे प्रभाव जातक पर पड़ सकते हैं जिससे कि जातक के जीवन में अनेक प्रकार की विकट समस्याएं खड़ी हो जाती है। अतः शनिदेव के कष्टों और बुरे प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए हर शनिवार को व्रत करना चाहिए, साथ ही कथा का भी पाठ करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि के प्रकोपों से मुक्ति मिलती है।
शनिवार व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मांड में स्थित नवग्रहों के बीच आपस में विवाद हो गया। सभी नवग्रह तय करना चाहते थे कि उन सभी में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? इस विवाद का हल निकालने के लिए सभी नवग्रह मिलकर देवराज इंद्र के समीप पहुंचे। इस विवाद से बचने के लिए देवराज इंद्र ने इन नवग्रहों से कहा कि धरती पर स्थित उज्जैन नाम की जगह पर एक विक्रमादित्य नाम का राजा राज करता है जो सदा सही न्याय करता है। आप सभी नवग्रह उन्हीं के पास जाइए। वे राजा ही आपके विवाद का न्याय संगत निर्णय कर सकते हैं।
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नवग्रह इंद्र की बात मानकर राजा विक्रमादित्य के समीप पहुंचे और अपनी परेशानियां राजा को सुनाई। राजा जानते थे कि वे जिसे छोटा बताएंगे, वह कुपित/क्रोधित हो जाएगा, परंतु राजा न्याय की राह नहीं छोड़ना चाहते थे।
राजा विक्रमादित्य ने नव धातुओं के नौ सिंहासन बनाएं और सभी ग्रहों को उनके अनुरूप क्रमशः स्थान ग्रहण करने को कहा। इस क्रम में लोहे का सिंहासन सबसे अंत में था जो शनि ग्रह के लिए नियुक्त किया गया था। इस प्रकार शनिग्रह को सभी ग्रहों में सबसे अंतिम स्थान बैठने को प्राप्त हुआ। शनिदेव राजा विक्रमादित्य के इस निर्णय से अत्यंत क्रोधित हो गए और अपना समय आने पर राजा विक्रमादित्य को दुख देने की चेतावनी देकर वहाँ से चले गए।
राजा विक्रमादित्य पर शनिदेव की साढ़ेसाती: कुछ समय पश्चात राजा विक्रमादित्य की कुंडली में साढ़ेसाती आई। कुछ समय पश्चात शनिदेव राजा विक्रमादित्य के दरबार में घोड़े के सौदागर बनकर आए। राजा विक्रमादित्य को उन सभी घोड़े में से एक घोड़ा बेहद पसंद आया। वे उस घोड़े की घुड़सवारी करने के लिए बैठा। राजा विक्रमादित्य जैसे ही उस घोड़े पर बैठा, वो घोड़ा उसे जंगल की ओर लेकर भागा तथा वह घोड़ा कहीं विलुप्त हो गया और किसी नए देश जा पहुंचा जहां राजा विक्रमादित्य एक सेठ से बात करने लगा। सेठ के यहां राजा विक्रमादित्य के पहुंचते ही सेठ बहुत सारा सामान बिकने लगा जिससे कि सेठ प्रसन्न होकर राजा विक्रमादित्य को अपने घर भोजन कराने ले गया। भोजन करते हुए राजा विक्रमादित्य ने देखा कि एक खूँटी पर हार लटकी हुई है और वह खूँटी उस हार को निगल रही है। राजा के भोजन करने के पश्चात् सेठ ने हार को उस खूंटी पर न पाया और राजा विक्रमादित्य पर चोरी का आरोप लगा दिया और चोरी के आरोप में राजा विक्रमादित्य को अपने राजा के यहां कैद करवा दिया और उनके हाथ भी कटवा दिए, फिर राजा विक्रमादित्य को छोड़ दिया।
राजा विक्रमादित्य को छोड़ने के बाद एक तेली ने विकलांग राजा पर तरस खाकर उसे अपने घर ले गया और कोल्हू के बैलों को हाँकने का काम दे दिया। इस तरह राजा के साढे 7 साल बीत गए और एक रात शनिदेव की महादशा समाप्त होते ही राजा विक्रमादित्य ने ऐसा राग छेड़ा कि उस राग को सुनकर उस राज्य की राजकुमारी उससे मोहित हो गई और राजा विक्रमादित्य से विवाह करने का निर्णय ले लिया। लाख कोशिशों के बावजूद भी राजकुमारी नहीं मानी तो अंततः राजा ने अपनी राजकुमारी का विवाह विकलांग विक्रमादित्य से कर दिया।
रात्रि में शनिदेव ने विक्रमादित्य के सपने में आकर कहा कि तुमने मुझे सबसे छोटा ठहराया था न। अब देखो मेरा ताप और बताओ कि किस ग्रह में मेरे जितना प्रकोप है। राजा विक्रमादित्य ने शनिदेव से गिड़गिरा कर माफी मांगी जिसके बाद शनिदेव ने राजा पर तरस खाकर उसे माफ कर दिया।
सुबह होते ही चारों तरफ राजा विक्रमादित्य और शनि देव की कथा की चर्चा होने लगी। राजा विक्रमाजीत की जानकारी मिलते ही वह सेठ भी माफी मांगने आया और राजा विक्रमादित्य को भोजन का निमंत्रण व आग्रह किया। राजा विक्रमादित्य निमंत्रण को स्वीकार कर भोजन पर सेठ के यहाँ पहुँचे। भोजन करते वक्त राजा और सबने देखा कि वह खूँटी उस हार को उगल रही है जिससे सबके सामने यह सिद्ध हो गया कि राजा विक्रमादित्य ने चोरी नहीं की थी। सेठ ने राजा विक्रमादित्य से कई बार माफ़ी मांगी और अपनी कन्या का विवाह राजा विक्रमाजीत के साथ कर दिया। राजा विक्रमादित्य अपनी दोनों रानियों और ढेर सारे उपहारों के साथ अपने राज्य उज्जैन वापस आ गए और राज्य कार्य संभाला। इस प्रकार राजा की साढ़ेसाती समाप्त हो गई।
शनिदेव की साढ़ेसाती से निजात और घर में सुख-समृद्धि के उपाय
शनिवार के दिन एक लोहे के पात्र में जल, गुड़, तिल, घी एवं दूध मिला लें। उसके बाद उस जल को पीपल के पेड़ की जड़ में डाल दें। इस उपाय को 40 दिन तक करें। ज्योतिष के अनुसार ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, शनिदेव की साढ़ेसाती से मुक्ति मिलती है और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है, साथ ही घर में माँ लक्ष्मी का स्थाई रूप से वास होता है।
राहु-केतु की दशा सही करने के लिए
यदि जातक की कुंडली में राहु केतु की स्थिति खराब है और जातक अपने जीवन में परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो शनिवार के दिन छोटे से काले पत्थर को तिल के तेल में डुबोकर 7 बार अपने सिर के ऊपर से घुमाकर उस पत्थर को आग में डाल दें और जब आग बुझ जाए और पत्थर ठंडा हो जाए तो उस पत्थर को किसी सूखे कुएं में डाल दें। ऐसा करने से ज्योतिष के अनुसार यह माना जाता है कि ग्रह शांत होते हैं।
कर्ज से मुक्ति के उपाय
यदि जातक कर्ज से परेशान है और इससे निजात पाना चाहता है तो शनिवार के दिन शिवलिंग पर "ओम मुक्तेश्वर सामान्यतः नमः" मंत्र बोलते हुए मसूर की दाल अर्पित करें। ऐसा करने से जातक को कर्ज से मुक्ति मिलती है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
भाग्य का उदय
किसी कार्य में सफलता पाने के लिए मेहनत और परिश्रम के साथ-साथ भाग्योदय का उदय होना भी महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिष के अनुसार शनिवार के दिन कपूर के तेल की कुछ बूंदे पानी में मिलाकर उससे स्नान करें। इससे आप पूरे दिन तरोताजा एवं उत्साहित महसूस करते हैं जिससे आप अपने कार्य को सही तरीके से कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार ऐसा करने से आप का भाग्योदय होगा।