समग्र अध्यात्म इन्हीं चार स्तंभों पर टिका हुआ है। अगर हम इन चार कर्मों को अपनी जीवनशैली में धारण करेंगे, तो स्वाभाविक ही हम निहाल व धन्य जीवन में सुख- शांति, स्वर्ग व मुक्ति का अनुसरण कर सकते हैं।
अध्यात्म के अनुसार मानव अपने अंतःकरण की शुद्धि करता है जिससे मानव की संपूर्ण जगत की इच्छाएं व तृष्णाऐं पूर्ण हो सकती हैं। जो सुख हम से हजारों मील दूर है, वह हमारे समीप आकर हमारे चरण स्पर्श कर सकता है। जिस प्रकार आग दूर से बड़ी चमकदार प्रतीत होती है किंतु नजदीक जाते ही, उसके तेज व लपटों से हम जलने लगते हैं, ठीक इसी प्रकार आज के भौतिकवादी युग में, हम बाहरी चीजों के सहारे सुख व शांति का आश्वासन प्राप्त करने की दिन-रात चेष्टा करते हैं, किंतु वह पल भर का सुख व प्रसन्नता की अनुभूति प्रदान कर फिर से गुम हो जाती है। इस मानसिक विक्षिप्तता से पार पाने का संपूर्ण जगत में एकमात्र मार्ग है, अध्यात्म अर्थात अपने अंतःकरण की शुद्धि, अंतर मन से प्रीति व शांति।
यह भी सही है कि नैतिकता, पवित्र जीवन मूल्य, नकारात्मक कर्म, सामाजिक व राष्ट्रीय कार्य को आघात समझना, सत्य, न्याय शाश्वत मूल्य सदैव अपने जीवन को प्रकाशित करते रहे है। इसमें कभी किसी का विश्वास डिगना नहीं चाहिए। यही वास्तव में सच्चा अध्यात्म है।
अध्यात्म को आत्मसात कर साधक अपनी आध्यात्मिक जीवन शैली का परिचय देता है। उसकी जीवन शैली का संबंध व्यवहारिक व बाहरी जीवन की अपेक्षा, उसके आंतरिक जीवन से कहीं अधिक होती है। वह अपने साधारण जीवन में सामान्य कार्य को करता हुआ भी अपने आंतरिक जीवन को प्रकाशित करता है। उसके जीवन की विशेषताएं उसके कर्मों के स्वरूप में नहीं, वरन् उसके विचारों, भावनाओं व दृष्टिकोण से होती हैं। वह महत्वाकांक्षाओं के साथ नहीं, महानता की आकांक्षा के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है। संसार में रहकर सांसारिक जीवन यापन करते हुए भी उसके भाव, विचार, वृत्तियां, ब्राह्मी चेतना के साथ तदाकार होती है।